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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (17) जिसकी लाठी उसकी भैंस ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = जिसकी लाठी उसकी भैंस



वो दिन भी बाकी दिनों की तरह चला गया था, आज न जाने क्यूँ मानव को अपने पिता की याद आयी और सुबह सुबह ही उसने पूछा " मम्मी, पापा का फ़ोन नही आया, मुझे उनसे बात करनी है, कितने दिन हो गए, पापा हमें भूल तो नही गए "


"नही बेटा, आप जानते तो हो, अपने पापा को जरूर कोई काम आ गया होगा, इसलिए फ़ोन नही किया, रुको मैं अभी आपकी बात कराती हूँ " राधिका ने कहा और पास रखे मोबाइल से आशीष का नंबर डायल करने लगी


रिंग तो जा रही थी लेकिन कोई जवाब नही मिला, दो तीन बार राधिका ने उसे फ़ोन मिलाया, लेकिन कोई जवाब नही मिला, मैसेज भी किया लेकिन कोई जवाब नही मिला, राधिका को लगा की वो अभी तक नाराज़ है


राधिका ने बहाना बनाते हुए, मानव से कहा " बेटा, लगता है तुम्हारे पापा किसो सर्जरी में फ़स गए है, फ़ोन नही उठा रहे है, देखना वो खुद कॉल कर लेंगे, अभी आप जाओ बाहर आपके दादा इंतज़ार कर रहे है "


ठीक है, मम्मी, मानव ने कहा और वहाँ से चला गया, राधिका ने मानव को तो समझा दिया था, लेकिन खुद चिंतित थी आशीष के फ़ोन न उठाने को लेकर, अस्पताल में भी फ़ोन किया लेकिन वहाँ पर भी आशीष नही था, उसे चिंता होने लगी थी अब, लेकिन तब ही उसकी सास ने उसे बाहर बुला लिया शायद कोई मेहमान आया था कुछ गांव की औरते थी जो की उससे मिलने आयी थी


मानव और दीन दयाल जी आज फिर, गांव की सेर पर निकल पड़े थे, मानव उनका हाथ थामे सारे गांव की सेर कर रहा था, तब ही अचानक उसके दादा एक दुकान पर रुके और बोले " अरे! तुम तो रहमत भाई के बेटे, उस्मान हो न, बड़े दिनों बाद देखा तुम्हे, कब आये शहर से "


"नमस्ते! चाचा, आइये बैठिये " उस्मान ने कहा


"हाँ, हाँ बैठ जाता हूँ, तुम्हारे पिता जी कहा है, दुकान पर तुम बैठे हो, और पढ़ाई केसी जा रही है, कितने दिन के लिए आये हो गांव "दीन दयाल जी ने पूछा


"चाचा, मैने पढ़ाई छोड़ दी " उस्मान ने कहा

"लेकिन क्यूँ? तुम तो वहाँ रहकर सरकारी नौकरी की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे, इस तरह वो सब क्यूँ छोड़ दिया, तुम तो पढ़ाई में भी अच्छे थे " दीन दयाल जी ने कहा


"क्या बताऊ चाचा? मन भर सा गया था, इतने साल पढ़ाई करने के बाद भी जब कुछ हाथ नही लगा तब " उस्मान ने कहा


"लेकिन ऐसा भी क्या हुआ? कि तुमने पढ़ाई ही छोड़ दी, तुम ने तो काफी सरकारी परीक्षाओं के फॉर्म भरे थे और उनकी तैयारी भी तुम जी जान से और मेहनत से कर रहे थे, कुछ हुआ क्या? मैं कुछ मदद कर सकता हूँ " दीन दयाल जी ने कहा

"नही,, नही चाचा ऐसी कोई बात नही है,, ये लीजिये पापा भी आ गए, आप दोनों बाते कीजिये मैं दुकान संभालता हूँ, जाकर " उस्मान ने कहा और दुकान के गल्ले पर जाकर बैठ गया

"अरे! आज सूरज कौन सी दिशा से निकला है, जो आप हमारी दुकान पर तशरीफ़ लाए " रहमत भाई ने कहा दीन दयाल जी को देख कर

"उसी दिशा से जहाँ से रोज़ निकलता है " दीन दयाल जी ने जवाब में कहा

जिसके बाद दोनों हसने लगे,

"लगता है, बहु और बेटा आये हुए है, जरूर ये आपका पोता होगा " रहमत भाई ने कहा

"जी, सही पहचाना ये हमारा पोता है, बेटा मानव नमस्ते करो, रहमत चाचा को " दीन दयाल जी ने कहा मानव से

"मानव ने नमस्ते किया, बहुत प्यारा पोता है आपका, नज़र न लगे, बेटा भी आया है क्या, लेकिन दिखाई तो नही दिया " रहमत जी ने कहा

ये सुन दीन दयाल जी के चहरे की मुस्कान कही गायब सी हो गयी थी, जिसे देख रहमत भाई समझ गए थे, क्या माजरा है


"आओ बैठ कर बाते करते है, उस्मान जरा दो कप चाय तो लाना पड़ोस वाली चाय की दुकान से और इन छोटे साहब जादे को इनके मतलब की चीज़ दो " रहमत भाई ने कहा

"जी पापा " उस्मान ने कहा और मानव को चॉकलेट देकर चाय लेने चला गया, दीन दयाल जी ने मना किया लेकिन वो जब तक चला गया था


"ये मैं क्या सुन रहा हूँ, उस्मान शहर से पढ़ाई छोड़ कर गांव आ गया, क्या वो अब दुकान संभाल रहा है "दीन दयाल जी ने कहा


"जी, दीना नाथ जी, वो अब यही आ गया, और अच्छा ही हुआ " रहमत भाई ने कहा


"लेकिन क्यूँ? उस्मान तो पढ़ने में अच्छा था, याद नही उसने बारहवीं में टॉप किया था तब आप ही तो मिठाई लेकर आये थे, हमारे घर,, और चाहते थे कि वो पढ़ लिख कर सरकारी अफसर लग जाए, जिसके लिए आपने उसे शहर भेज दिया था, वही रहकर वो पढ़ाई भी कर रहा था और सरकारी परीक्षाओं की तैयारी भी, लेकिन अब क्या हुआ, जो इस तरह वो सब कुछ छोड़ छाड़ कर दुकान सँभालने बैठ गया, कुछ लड़ाई हुयी क्या आपकी और आपके बेटे की " दीन दयाल जी ने पूछा


"नही,, नही ऐसा वैसा कुछ नही हुआ,, ये उसका अपना फैसला था,,, आपने वो कहावत सुनी है न " जिसकी लाठी उसकी भैंस "" रहमत भाई ने कहा


"जी सुनी है, लेकिन उसका आप दोनों से क्या लेना देना?" दीन दयाल जी ने पूछा


"लेना देना है, दीना नाथ जी,, बहुत कुछ लेना देना है,, आज कल हर जगह वही तो हो रहा है,, जिसके पास ताकत है सब कुछ उसे ही तो मिल रहा है, फिर चाहे ताकत पैसे की हो या फिर किसी और चीज की, मेहनत और लगन का आज के ज़माने क्या मोल


आज कल तो हंस दाना दुनका चुग रहे है, और कौवे मोती खा रहे है, उस्मान ने भी बहुत मेहनत और लगन से हर क्षेत्र में होने वाली सरकारी परीक्षा में भाग लिया, किताबों पर किताबें पढ़ डाली थी, हर परीक्षा में अच्छे अंक लाता था लेकिन क्या फायदा हुआ सीट तो उसे ही मिली जिसने ज्यादा से ज्यादा रिश्वत खिलाई जिसके पास पैसे की ताकत थी,


मेरे पास सिर्फ और सिर्फ बच्चों को पढ़ाने तक के पैसे थे,और ये दुकान जो मेरी कमाई का वाहिद जरया है, और वैसे भी उस्मान मेरा इकलौता बेटा तो नही है, उसके अलावा भी उसका एक छोटा भाई और बड़ी बहन है, सब कुछ उस्मान को नौकरी दिलाने और ही गवाह देता तो बाद में कुछ भी हाथ नही लगता,


इसलिए मैं भी चाहता था कि अब उस्मान इस दुकान पर बैठ जाए, कम से कम आज नही तो कल दुकान चलाना सीख जाएगा, शहर में रहकर अपने से कम तालीम याफ्ता लड़को को पैसे की ताकत से सरकारी दफ़्तरो में मुलाजिम लगता देखता तो बेवजह अपने आप को नुकसान पंहुचा बैठता, इसलिए उसने भी थक हार कर गांव आना ही सही समझा, वैसे वो दुकान के साथ शाम को बच्चों को पढ़ाता भी है, सिर्फ दुकान पर ही नही बैठता, कम से कम उसकी पढ़ाई उसके साथ साथ किसी और के काम भी आ रही है, भले ही उसने जो चाहा वो उसे नही मिला लेकिन कुछ न मिल पाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती है, चलते रहने का नाम ही तो जिंदगी है," रहमत भाई ने कहा


दीन दयाल जी ने रहमत भाई की तरफ देखा और बोले " परेशान न हो, ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है, भले ही वो आज नाकाम रहा लेकिन देखना एक दिन वो कामयाब जरूर हो जाएगा, हमेशा बलवान ही जीते ये जरूरी तो नही ईश्वर तो सब का है, और वो सब देख रहा है, कौन क्या क्या कर रहा है और कैसे कर रहा है "


"ठीक कहा, दीना नाथ जी आपने, ये लो चाय भी आ गयी " रहमत भाई ने कहा और चाय का आंनद लिया


मानव जो की आज एक और मुहावरें का मतलब जान चूका था, क्यूंकि वो उन दोनों की बाते बहुत ध्यान से सुन और समझ रहा था, और अगर कुछ समझ नही आया होगा तो वो बाद में अपने दादा से पूछ लेगा



मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता हेतु 










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3 Comments

Milind salve

06-Feb-2023 09:50 PM

👌👌👍🏼

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अदिति झा

06-Feb-2023 11:40 AM

Nice 👌

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